अतिसार चिकित्सा- (च.चि . १९ )
१. शोधन चिकित्सा प्रयोग ( बहुदोष )
२. "न तु संग्रहणं देयं पूर्वमामातिसारिणे (च. चि. १९/१५)
३. कठिनता पूर्वक प्रवृति होने पर -हरितकी क प्रयोग करना चाहिये,
४.
- अल्प दोष- लंघन प्रयोग,
- मध्यम दोष - प्रमथ्या प्रयोग
- बहुदोष-विरेचन कर्म प्रयोग,
*गुदभ्रंश-
रोगाधिकार योग-
- चांगेरी घृत,
- चव्यादि घृत,
- दशमूलादि बस्ति(अनुवासन)
*स्तब्धभृष्टगुदे-स्नेहस्वेदौ प्रयोजयेत्। पिचुनां संप्रवेशयेत्। (च. चि. १९/४६)
*पित्तज अतिसार-
* अजाक्षीर प्रयोग
* बहुदोषस्यदीप्ताग्नेः,पयसां तं विरेचयेत्। (च चि १९/५८),
* पिच्छाबस्ति प्रयोग।
* पिच्छाबस्ति प्रयोग।
*रक्तातिसार-
*अजाक्षीर,मधु,शक्कर के घोलका पान एवं गुदप्रक्षालन मे प्रयोग।,
*शतावरी कल्कं पयसां प्रयोजयेत्।,
*कफज अतिसार् -
"श्लेष्मातिसारे प्रथमं हितं लंघनपाचनम्।" (च. चि. १९/१०२)
अन्य योग-अजाज्यादि चूर्ण ,रसाञ्जनादि चूर्ण,कपित्थादि चूर्ण,बालबिल्वप्रयोग,चांगेरी घृत,षट्पल घृत ।
*सन्निपातज अतिसार् –
"वातस्यानुजयेत्पित्तं,पित्तस्यानुजयेत्कफम्।" (च. चि. १९/१२२),
*गुदा से अतिस्त्राव होने पर-
* चन्दनादि तैल,शतधोत घृत से वंक्षण प्रदेश पर सेचन।,
* चन्दन प्रयोग,
*गुदाप्रक्षालन योग-
* पटोलमधुकाम्बुनां,
* पंचवल्कलत्वक क्वाथ,
* अजा/गौ क्षीर,घृत,शक्कर,मधु।
* अजा/गौ क्षीर,घृत,शक्कर,मधु।
* अतिसार मे तण्डुलोदक श्रेष्ठ अनुपान हैं।
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