Thursday, 26 April 2018

चरक संहिता सूत्रस्थान अध्याय – १५ उपकल्पनीय/कल्पनाध्याय

चरक संहिता सूत्रस्थान अध्याय – १५ उपकल्पनीय/कल्पनाध्याय
Ref.-
Ø आतुरालय
Ø संभार द्रव्य प्रकरण- उद्देश्य – वमन विरेचन व्यापद् प्रतिकारार्थ
Ø “तुल्यं भवति ज्ञानं अज्ञानेनं इति ।
Ø सर्वकर्मणा सिद्धि- सम्यक् प्रयोग निमित्ता
Ø व्यापद् – असम्यक् प्रयोग निमित्त
Ø वमन विरेचन प्रकरण (सूत्र स्थान )
वमन
रोगी- सुखोषितं,सुप्रजीर्ण भक्तं,शिरःस्नात्,अनुलिप्तगात्रं
मदनफल कषाय की मात्रा – “प्रतिपुरुषमपेक्षितव्यानि”
                                    (काश्यप- २ अंजलि, ३ अंजलि, ४ अंजलि –क्रमशः-हीन,मध्यम,उत्तम मात्रा)
कषायपान उपरान्त – मूहुर्तमनुकांक्षेत्
वमन प्रक्रिया प्रासंगिक लक्षण-
ü स्वेदप्रादुर्भावेण    -      दोष प्रविलयन
ü लोमहर्षेण          –      दोषचलायमान
ü आध्मानेन         –      कुक्षिगतं ( कुक्षि में आगमन)
ü हृल्लासास्यास्त्रवण –   दोष उर्ध्वमुखी
रोगी की स्थिति- जानुसम आसन
परिचारक – लालाटप्रतिग्रहे,नाभिप्रपीडने,पृष्ठोन्मर्दने
पश्चात् कर्म – पाणिपाद प्रक्षालन, एक मूहुर्त तक आश्वासन,धूमपान
विरेचन
त्रिवृत्त कल्क की मात्रा – १ अक्ष/ कर्ष/तोला
(काश्यप- वामक कषाय की आधी = 1 अंजलि, 1.5 अंजलि, 2 अंजलि –क्रमशः-हीन,मध्यम,उत्तम मात्रा)
पश्चात् कर्म- No धूमपान 
वमन-विरेचन व्यापद् / उपद्रव – अतियोग अयोग =१०
वमन अतियोग- फेनिलरक्तचन्द्रिकोपगमनं,उर्ध्वगा वातरोगाः ।
Ref.-        “मलापहं रोगहरं बलवर्णप्रसादनम् । पीत्वासंशोधनं सम्यगायुषा युज्यते चिरम् ॥   For - संशोधन

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